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________________ ३११८ - भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होता हैं । ४ प्रश्न ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवड्या उववज्जति ? ___४ उत्तर-एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया । णवरं संघयणे पोग्गला अणिट्ठा अकंता जाव परिणमंति।ओगाहणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा उत्तरवेउध्विया य । तत्थ णं जा सा भवधारणिजा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सत्त धणूई तिण्णि रयणिओ छच्चंगुलाई । तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभाग, उपकोसेणं पण्णरस धणूई अड्ढाइजाओ रयणीओ। भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ४ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार की वक्तव्यतानुसार । किन्तु रत्नप्रभा के नैरयिकों के संहनन में अनिष्ट, अकान्त यावत् पुद्गल परिणमन होता है । अवगाहना दो प्रकार को-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय शरीर को अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाव और उत्कृष्ट सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल की होती है। उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष ढ़ाई हाथ की होती है। ५ प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किं संठिया पण्णता? ५ उत्तर-गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-भवधारणिजा य उत्तरवेउब्विया य । तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते हंडसंठिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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