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भगवती सूत्र - श. २४ उ २० पंचेन्द्रिय तिर्यचों की उत्पत्ति
प्रकार चौरिन्द्रियों के विषय में भी है, स्थिति और संवेध तेइन्द्रियों से भिन्न है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
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|| चौबीसवें शतक का उन्नीसवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक २४ उद्देशक २०
पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति
१ प्रश्न - पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति ? किं णेरइए हिंतो०, तिरिक्ख० मणुस्सेहिंतो देवेहिंतो
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उववज्जति ?
१ उत्तर - गोयमा ! रइए हिंतो उववज्जंति, तिरिक्ख०, मणुस्सेहिंतो वि०, देवेहिंतो वि उववजंति ।
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक जीव, कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिक, तियंच, मनुष्य या देव से आ कर उत्पन्न
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