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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १७ वेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति
एवं जाव चरिदिएणं समं चउसु संखेजा भवा, पंचसु अट्ठ भवा । पंचिंदियतिरिक्खजोणियमणुस्सेसु समं तहेव अट्ठ भवा । देवेसु ण चेव ज्ववजंति, ठिई संवेहं च जाणेजा।
* 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! ति ॐ ॥ चउवीसइमे सए सत्तरसमो उद्देसो समत्तो ॥ . भावार्थ-१प्रश्न-हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीव कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि यावत् हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव यदि बेइन्द्रिय में उत्पन्न हों, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त (पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने योग्य) पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता के समान, यावत् भवादेश से जघन्य दो भव, उत्कृष्ट संख्यात भव कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात काल तक यावत् गमनागमन करते हैं । जिस प्रकार पृथ्वीकायिक के साथ में बेइन्द्रिय का संवेध कहा गया है, उसी प्रकार पहला, दूसरा, चौथा और पाँचवा, इन चार गमकों में संवेध जानना चाहिये । शेष पाँच गमकों में उसी प्रकार आठ भव होते हैं। इसी प्रकार अपकायिक से ले कर यावत् चतुरिन्द्रियों के साथ चार गमकों में संख्यात भव और शेष पाँच गमकों में आठ भव जानने चाहिये । तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों के साथ सभी गमकों में आठ भव जानने चाहिए। देवों से चव कर आया हआ जीव, बेइन्द्रिय जीवों में उत्पन्न नहीं होता। स्थिति और संवेध पहले से भिन्न है।
___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-पृथ्वीकायिक जीव के पृथ्वीकायिक जीव में ही उत्पन्न होने की वक्तव्यता के समान बेइन्द्रिय में उत्पन्न होने के विषय में भी जानना चाहिये तथा पृथ्वीकायिक जीव का बेइन्द्रिय के साथ जो संवेध कहा गया है, वही अप्काय, तेउकाय,
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