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भगवती सूत्र - २० उ. १० षट्क समजत नो- पट्क समर्जित
१३ उत्तर - हे गौतम! कतिसंचित सिद्ध सब से थोड़े है और उनसे अवक्तव्यसंचित सिद्ध संख्यात गुण हैं ।
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विवेचन - जो जीव दूसरी जाति में से आकर एक समय में एक साथ संख्यात उत्पन्न होते हैं, उन्हें 'कतिसंचित' कहते हैं। दो से ले कर उत्कृष्ट संख्याता तक की संख्या को यहां 'कतिसंचित' कहा है । जो एक समय में, एक साथ असंख्यात उत्पन्न होते है, उन्हें 'अकतिसंचित' कहते है । जो एक समय में एक उत्पन्न हो, उसे 'अवक्तव्यसंचित' कहते हैं । यिक जीव तीनों प्रकार के होते हैं। क्योंकि वे एक समय में, एक साथ एक ले कर असंख्यात तक उत्पन्न होते हैं ।
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पृथ्वी कायिकादि पांच स्थावर अकतिसंचित हैं, क्योंकि वे एक समय में एक साथ असंख्यात उत्पन्न होते हैं, एक-दो नहीं । यद्यपि वनस्पतिकायिक जीव एक समय में, एक साथ अनन्त उत्पन्न होते हैं, किन्तु यहां विजातीय जीवों से आ कर उत्पन्न होने वाले जीवों की विवक्षा है । इससे वे असंख्यात ही उत्पन्न होते हैं । अनन्त तो स्वजाति के वनस्पति जीव, स्वजाति में ही उत्पन्न होते हैं ।
सिद्ध भगवान् अकतिसंचित नहीं हैं, क्योंकि मोक्ष जाने वाले जीव एक समय में एक साथ एक से लेकर संख्यात ( एक सौ आठ तक ) ही सिद्ध होते हैं । असंख्यात जीव एक समय में एक साथ सिद्ध नहीं होते ।
एकेन्द्रिय को छोड़ कर शेष का जो अल्प - बहुत्व कहा गया है, वह इस प्रकार हैअवक्तव्यं संचित सत्र से थोड़े हैं, क्योंकि अवक्तव्य स्थान एक है। उनसे कतिसंचित संख्यात गुण हैं, क्योंकि उनके संख्यात स्थान हैं और अकतिसंचित असंख्यात गुण हैं, क्योंकि असंख्यात स्थान भी असंख्य हैं । इस विषय में कुछ आचार्यों का कथन इस प्रकार है कि. इसमें स्थान की अल्पता कारण नहीं है, किन्तु वस्तु-स्वभाव ही ऐसा है । क्योंकि कतिसंचित स्थान बहुत्व होने पर भी कतिसंचित सिद्ध सत्र से थोड़े हैं और अवक्तव्य स्थान एक होने पर भी अवक्तव्यसंचित सिद्ध उनसे संख्यात गुण हैं, क्योंकि दो आदि रूप से केवली अल्प संप्रा में सिद्ध होते हैं । अतः वस्तु-स्वभाव और लोक-स्वभाव ऐसा ही हैं - यह मानना चाहिये ।
षट्क- समर्जित नो-षट्क - समर्जित
१४ प्रश्न - रइया णं भंते ! किं छफ्कसमजिया १, णोछक्क
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