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भगवती सूत्र - २४ उ १ नैरयिकादि का उपपातादि ३००१
क्खजोगिए उकोसकालटिईयरयणप्पभा० जाव करेजा ?
५१ उत्तर - गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणेणं पलिओ मस्स असंखेजड़ भागं पुव्वकोडीए अमहियं, उक्कोसेण विपलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वकोडीए अव्महियं, एवइयं कालं सेवेज्जा, जाव गइरागई करेजा १ | एवं एए ओहिया तिष्णि गमगा ३, जहण्णका लट्ठिएमु तिष्णि गमगा, उक्कोसका लट्ठिईएस तिष्णि गमगा ९, सव्वे ते णव गमा भवति ।
भावार्थ - ५१ प्रश्न - हे भगवन् ! वह उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच, रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न हो और पुनः उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक हो, तो कितने काल तक यावत् गमनागमन करता है ?
५१ उत्तर - हे गौतम! दो भव और काल की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग तक यावत् गमनागमन करता है । ९ । इस प्रकार औधिक तीन गमक हैं, जघन्य काल की स्थिति के तीन गमक हैं और उत्कृष्ट स्थिति के भी तीन गमक हैं। ये सब मिला कर ९ गमक होते हैं ।
विवेचन- १ - पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक जीव का नरक में उत्पन्न होना, यह पहला गमक है । २ - जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होना, यह दूसरा गमक है । ३ - उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होना, यह तीसरा गमक है । इस प्रकार पर्याप्त असज्ञी पचेन्द्रिय तिर्यच के साथ किसी प्रकार का विशेषण लगाये बिना तीम गमक बनते हैं । इसी प्रकार जघन्य स्थिति वाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक जीव के तीन गमक बनते हैं और तीन गमक उत्कृष्ट स्थिति वाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक जीव के बनते हैं । ये नव गमक होते हैं ।
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असंज्ञी की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है और नरक में जाने वाले के अध्य
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