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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ संज्ञी तिथंच का नरकोपपात
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भावार्थ-५५ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञो पञ्चेन्द्रिय तियंच, रत्नप्रभा पृथ्वी में नरयिकपने उत्पन्न हो, तो कितने वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
५५ उत्तर-हे गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ।
५६ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति ? ५६ उत्तर-जहेव असण्णी।
भावार्थ-५६ प्रश्न-हे भगवन् ! वे संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यच, एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
५६ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत्, असंज्ञी के समान ।
५७ प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरंगा किं संघयणी पण्णता?
५७ उत्तर-गोयमा ! छव्विहसंघयणी पण्णता, तं जहा-वइरो. सभणारायसंघयणी, उसभणारायसंघयणी जाव छेवटुसंघयणी। सरीरो' गाहणा जहेव असण्णीणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उकोसेणं जोयणसहस्सं ।
भावार्थ-५७ प्रश्न-हे भगवन् ! उन के शरीर के संहनन कितने हैं ?
५७ उत्तर-हे गौतम ! उनके शरीर छहों संहनन वाले हैं। यथावज्रऋषभनाराचसंहनन यावत् सेवार्तसंहनन । शरीर की अवगाहना असंज्ञी के सनान जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन ।
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