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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २ असुरकुमारों का उपपात
पल्योपम असुरकुमार भव सम्बन्धी समझनी चाहिये । जीव, देवभव से निकल कर फिर असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले जीवों में उत्पन्न नहीं होते । जघन्य स्थिति रूप चौथा गमक है। उसमें जघन्य स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि होती है-ऐसा पक्षी आदि के लिए समझना चाहिये । उत्कृष्ट स्थिति सातिरेक पूवकोटि जो बतलाई गई है, उसका आशय यह है कि असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले पक्षी आदि की स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि होती है और वह उत्कृष्ट अपनी आयु के बराबर ही देव आयु का बन्ध करता है । उत्कृष्ट अवगाहना सातिरेक एक हजार धनुष की बतलाई गई है, वह सातवें कुलकर (नाभि) या उससे पहले होने वाले इस्ती आदि की अपेक्षा समझनी चाहिये । क्योंकि यहाँ जघन्य स्थिति वाले असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंच का प्रकरण चल रहा है। उसकी आयु सातिरेक पूर्वकोटि होती है । इस प्रकार का हस्ती आदि सातवें कुलकर या उससे पहले ही पाया जाता है । सातवें कुलकर को अवगाहना तो पांच सौ पच्चीस धनुष होती है और उनसे पहले होने वाले कुलकरों की अवगाहना उनसे अधिक होती है और उनके समय में होने वाले हस्ती आदि की अवगाहना उनसे दुगुनी होती है । अतः सातवें कुलकर या उससे पहले होने वाले असंख्यात वर्ष की आयुष्य बाले हस्ती आदि में ही उपर्युक्त अवगाहना-प्रमाण पाया जाता है ।
चौथे गमक में जो सातिरेक दो पूर्वकोटि की स्थिति बतलाई गई है, उसमें एक सातिरेक पूर्वकोटि तो तिर्यंच भव सम्बन्धी समझनी चाहिये और एक सातिरेक पूर्वकोटि असुरकुमार भव सम्बन्धी समझनी चाहिये । असुरकुमारों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की होती है और उनका संवेध सातिरेक पूर्वकोटि सहित दस हजार वर्ष होता है । शेप गमक स्वतः स्पष्ट ही हैं।
१६ प्रश्न-जइ संखेजवासाउयसण्णिपंचिंदिय० जाव उववजति किं जलचर०, एवं जाव पजत्वसंखेजवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववजित्तए, से णं भंते । केवइयकालट्टिईएसु उववज्जेजा ?
१६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सटिईएसु, उक्कोसेणं
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