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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति
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२६ प्रश्न-जइ तेइंदिएहिंतो उववजंति ?
२६ उत्तर-एवं चेव णव गमगा भाणियव्वा, णवरं आदिल्लेसु तिसु वि गमएसु सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, उकोसेणं तिण्णि गाउयाई । तिणि इंदियाई । ठिई जहणणेणं अतो. मुहत्तं, उक्कोसेणं एगूणपण्णं राइंदियाइं । तइयगमए कालादेसेणं जहण्णेणं वावीसं वाससहस्साई अंतोमुहत्तमभहियाई, उक्कोसेणं अट्ठा. सीइं वामसहस्साइं छण्णउइं राइंदियसयमभहियाई-एवइयं०। मज्झिमा तिणि गमगा तहेव, पच्छिमा वि तिण्णि गमगा तहेव । णवरं ठिई जहण्णेणं एगूणपण्णं राइंदियाई, उक्कोसेण वि एगूणपण्णं राइं. दियाई । संवेहो उवजुंजिऊण भाणियव्यो ९।
कठिन शब्दार्थ-एगणपण्णं-उनपचास (४९) । भावार्थ-२६ प्रश्न-यदि वह पृथ्वीकायिक तेइन्द्रिय से आता हो, तो?
२६ उत्तर-यहां भी इसी प्रकार नौ गमक कहना चाहिये । प्रथम के तीन गमकों में शरीर को अवगाहना जघन्य अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है । इन्द्रियाँ तीन और स्थिति जघन्य अन्तर्महर्त और उत्कृष्ट ४९ रात्रि-दिवस की होती है। तीसरे गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहुर्त अधिक २२००० वर्ष और उत्कृष्ट १९६ रात्रि-दिवस अधिक ८८००० वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है। बीच के तीन (चौथे, पांचवें और छठे) गमक का कथन भी उसी प्रकार (बेइन्द्रिय के समान) जानना चाहिये । अन्तिम तीन (सातवें, आठवें और नौवें) गमक का कथन भी उसी प्रकार जानना चाहिये । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट ४९ रात्रि दिवस की होती है और संवेध उपयोगपूर्वक कहना चाहिये ।
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