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भगवती सूत्र-श. २४ उ १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उ पत्ति
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भावार्थ-३१ प्रश्न-हे भगवन् ! वे असंजी पंचेंद्रिय तिर्यच-योनिक जीव, एक समय में कितने आते हैं, इत्यादि ? ।
३१ उत्तर-बेइन्द्रिय के औधिक गमकों के अनुसार । विशेष में शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन होती है। इन्द्रियाँ पाँच । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि, शेष पूर्ववत् । संवेध भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव, कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट ८८००० वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि तक यावत् गमनागमन करता है । नौ गमकों में भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव होते हैं। कालादेश से कायसंवेध उपयोगपूर्वक कहना चाहिये, विशेष यह है कि मध्य के (चौथा, पांचवां और छठा) तीन गमकों का कथन बेइन्द्रिय के मध्य के तीन गमकों के समान । पिछले (सातवाँ, आठवाँ, नौवाँ) तीन गमकों का कथन प्रथम के तीन गमकों के अनुसार । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि, शेष पूर्ववत्, यावत् नौवें गमक में संवेध कालादेश से जघन्य २२००० वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट ८८००० वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि यावत् गमनागमन करता है १-९।
..... ३२ प्रश्न-जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं संखेजवासाउय०, असंखेजवासाउय० ?
३२ उत्तर-गोयमा ! संखेजवासाउय०, णो असंखेजवासाउय० ।
भावार्थ-३२ प्रश्न-यदि वे पृथ्वी कायिक, सजी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च-योनिक से आते हैं, तो संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले से आते हैं या असंख्यात वर्ष की ?
३२ उत्तर-वे संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंचयोनिक से आते हैं, असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले से नहीं आते।
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