________________
भगवती सूत्र-ग. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति
जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है, शेष पूर्ववत् ।
विवेचन - जिस प्रकार जघन्य स्थिति वाले अमंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च के तीन गमक कहे हैं, उसी प्रकार असंज्ञी मनुष्य के भी तीन अधिक गमक होते हैं । शेष छह गमक नहीं होते ।
रत्नप्रभा में उत्पन्न होने के योग्य संज्ञी मनुष्य के जिस प्रकार गमक कहे, उसी प्रकार इसके छह गमक (पहला, दूसरा, तीसरा तथा सातवाँ, आठवाँ नौवाँ ) जानना चाहिये । विशेषता यह है कि रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले मनुष्य की अवगाहना जघन्य अंगुल - पृथक्त्व और स्थिति जघन्य मास - पृथक्त्व कही थी, किन्तु यहाँ अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और स्थिति अन्तर्मुहुर्त है । संवेध - नौ गमकों में पृथ्वीकायिक में आने वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च के समान । क्योंकि पृथ्वीकायिक जीवों में आने वाले संज्ञी मनुष्य और तिर्यञ्च की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि होती है ।
प्रथम के औधिक गमकों में जो अवगाहना और स्थिति कही गई है, वह अन्तिम गमकों में नहीं होती, किन्तु इनमें अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष तथा स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि का है ।
३०९५
४१ प्रश्न - जइ देवेहिंतो उववज्जंति किं भवणवासि देवेहिंतो उववज्जंति, वाणमंतर०, जोइसियदेवेर्हितो ० वेमाणियदेवेहिंतो उववज्रं ति ?
"
४१ उत्तर - गोयमा ! भवणवासिदेवेहिंतो वि उववज्जंति जाव वेमाणियदेवेहिंतो वि उववजंति ।
Jain Education International
भावार्थ - ४१ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि वे पृथ्वीकायिक जीव, देवों से आते हैं, तो क्या भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी या बैमानिक देवों से आते हैं ? ४१ उत्तर - हे गौतम ! वे भवनपति यावत् वैमानिक देवों से भी आते हैं।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org