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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १२ पृथ्वी कायिक जीवों की उत्पत्ति
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पढमगमए । णवरं ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी, सेसं तं चेव ९।
भावार्थ-३४ प्रश्न-हे भगवन ! वे संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पंचेंन्द्रिय तियंच, पृथ्वीकायिक जीवों में आते हों, तो एक समय में कितने आते हैं ?
३४ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभा में आने वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यच सम्बन्धी वक्तव्यता कही, उसी प्रकार यहां भी जाननी चाहिये । शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती है। शेष इसी प्रकार जानना चाहिये, यावत् कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट ८८००० वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि तक यावत् गमनागमन करते हैं । इस प्रकार नौ गमकों में सर्वत्र सवेध-असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच के समान है । प्रथम के तीन गमक और मध्य के तीन गमकों में भी यही वक्तव्यता जाननी चाहिये, परन्तु मध्य के (चौथा, पांचवां और : छठा) तीन गमकों में ये नौ नानात्व है । यथा-१ शरीर की अवगाहना जघन्य
और उत्कृष्ट अंगुल का असंख्यातवां भाग, २-लेश्या तीन, ३-मिथ्यादृष्टि, ४-दो अज्ञान, ५-काययोगी, ६-तीन समुद्घात, ७-स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त, ८-अध्यवसाय अप्रशस्त और ९-अनुबन्ध स्थिति के अनुसार होता है, शेष पूर्ववत् । अन्तिम (सातवां, आठवां और नौवां) तीन गमकों में प्रथम गमक के समान, स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि का होता है, शेष पूर्ववत् ।
- विवेचन-पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी और असंज्ञो पंचेन्द्रिय तियंचों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की होती है और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच के प्रथम, द्वितीय और तृतीय गमक का कथन, रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच के प्रथम, द्वितीय और तृतीय गमक के समान ही है । चौथे, पांचवें और छठे गमक का कथन भी इसी प्रकार है, किन्तु अन्तर नौ विषयों में है, जो मूल में बताया गया है । अन्तिम तीन गमकों का कथन प्रथम तीन गमकों के समान है। स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि का होता है।
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