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भगवती सूत्र - श. २४ उ १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति ३०८३
वक्तव्यता जाननी चाहिये, किन्तु विशेष में यहां सात नानात्व ( भेद ) हैं । यथा१ - शरीर की अवगाहना पृथ्वीकायिकों के समान ( अंगुल के असंख्यातवें भाग ) है, २ - वे सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते, मिथ्यादृष्टि होते हैं, ३ - दो अज्ञान नियम से होते हैं, ४- वे मनयोगी और वचनयोगी नहीं होते, काययोगी होते हैं, ५- स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त होती है, ६ अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं, ७-स्थिति के अनुसार अनुबन्ध होता है। दूसरे त्रिक के पहले के दो गमकों में (चौथे और पांचवें गमक में ) संवेध भी इसी प्रकार जानना चाहिये । छठे गमक में भवादेश उसी प्रकार आठ भव । कालादेश से जन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक २२००० वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८००० वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है । ४-५-६ ।
२५-सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठिईओ जाओ, एयरस वि ओहियगमगसरिसा तिष्णि गमगा भाणियव्वा । णवरं तिसु वि गम ठिई जहणेणं वारस संवच्छराई, उक्कोसेण वि बारस संवच्छराई | एवं अणुबंधो वि । भवादेसेणं जहणणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई | कालादेसेणं उवजुंजिऊण भाणियव्वं, जाव णवमे गमए जहणेणं बावीसं वाससहस्साई बारसहिं संवच्छ रेहिं अब्भहियाई, उकोसेणं अट्टासीइं वाससहस्साई अडयालीसाए संबन्छ रेहिं अमहियाई - एवइयं ० ९ ।
'भावार्थ - २५ - यदि वह बेइन्द्रिय जीव, स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिक जीवों में आता हो, तो तीनों गमक औधिक गमकों के समान जानना चाहिये। तीनों गमकों में स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है ।
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