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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति
२७ प्रश्न-जइ चउरिदिएहिंतो उववज्जति ?
२७ उत्तर-एवं चेव चउरिंदियाण वि णव गमगा भाणियब्वा । णवरं एएसु चेव ठाणेसु णाणत्ता भाणियव्वा। सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई । ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण य छम्मासा । एवं अणुबंधो वि । चत्तारि इंदियाई, सेसं तं चेक जाव णवमगमए । कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साई छहिं मासेहिं अभहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासीइं वाससहस्साई चउवीसाए मासेहिं अभहियाई-एवइयं० ९ ।
भावार्थ-२७ प्रश्न-यदि वह पृथ्वीकायिक जीव, चतुरिन्द्रिय जीवों से आते हो, तो?
२७ उत्तर-इस विषय में भी इसी प्रकार नौ गमक कहना चाहिये । शरीर को अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार गाऊ की होती है । स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट छह मास की होती है । स्थिति के अनुसार अनुबन्ध होता है। इन्द्रियां चार होती हैं। शेष पूर्ववत् यावत् नौवें गमक में कालादेश से जघन्य छह मास अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चौबीस मास अधिक ८८००० वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है।
विवेचन-तेइन्द्रिय के तीसरे गमक में उत्कृष्ट आठ भव होते हैं। उनमें से तेइंद्रिय के चार भवों की उत्कृष्ट स्थिति १९६ रात्रि-दिवस और पृथ्वीकाय के चार भवों की उत्कृष्ट स्थिति ८८.०० वर्ष होती है। दोनों को मिला कर १९६ रात्रि-दिवस अधिक ८८००० वर्ष होते हैं। चौथा, पाँचवा और छठा गमक बेइन्द्रिय के समान है। सातवें, आठवें और नौवें गमक का संवेध भवादेश से प्रत्येक के आठ भव होते हैं । कालादेश से सातवें और नौवें गमक में उत्कृष्ट १९६ रात्रि-दिवस अधिक ८८००० वर्ष होते हैं। आठवें गमक में चार अन्तर्मुहूर्त अधिक १९६ रात्रि-दिवस होते हैं। ..
चतुरिन्द्रिय का कथन तेइन्द्रिय के समान है। अवगाहना आदि की विशेषता मूल.
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