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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २ अमुग्कुमारों का उपपात
साइरेगसागरोवमट्टिईएमु उववज्जेजा।
___ भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि असुरकुमार, संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचों से आते हैं, तो क्या जलचरों से आते हैं, इत्यादि यावत् हे भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संजी पञ्चेन्द्रिय तियंच-योनिक जीव, जो असुरकुमारों में उत्पन्न होता है, वह कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट सातिरेक एक सागरोपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ।
१७ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं० ?
१७ उत्तर-एवं एएसिं रयणप्पभापुढविगमगसरिसा णव गमगा णेयव्वा । णवरं जाहे अप्पणा जहण्णकालट्टिइओ भवइ, ताहे तिसु वि गमएसु इमं णाणत्तं-चत्तारि लेस्साओ, अज्झवसाणा पसत्था, णो अप्पसत्था, सेसं तं चेव । संवेहो साइरेगेण सोगरोवमेण कायवो ९ ।
. भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगक्न ! वे संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में वर्णित नौ गमकों के समान जानना चाहिये । जब वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला होता है, तब तीनों ही गमकों (४-५-६) में यह भेद है । इनमें लेश्या चार होती हैं । अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं होते । शेष सब पूर्ववत् । संवेधसातिरेक सागरोपम से कहना चाहिये । ९ ।
विवेचन-'उत्कृष्ट सातिरेक सागरोपम स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है'-यह कथन वलीन्द्र निकाय की अपेक्षा समझना चाहिये ।
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