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भगवती सूत्र - श. २४ उ १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति
चउसु गमएस जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं असंखेज्जाई भवग्गहणाईं । तइयगमए कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्सा इं अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं सोलसुत्तरं वाससयसहस्सं - एवइयं ० । छट्टै गएकाला देसेणं जहणेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमव्भहियाई, उक्कोसेणं अट्टासीइं वाससहस्साई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अन्भहियाई - एवइयं ० | सत्तमे गमए कालादेसेणं जहण्णेणं सत्त वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं सोलसुत्तरं वाससयस हरसंएवइयं । अट्टमे गमए कालादेसेणं जहणेणं सत्त वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं वाससहस्साइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाई - एवइयं ०। नवमे गमए भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ट भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणेणं एगूणतीसं वाससहस्साई, उक्कोसेणं सोलसुत्तरं वासस्य सहरसंएवइयं । एवं वसु वि गमपसु आउकाइयट्टिई जाणियव्वा ९ ।
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कठिन शब्दार्थ - - थिबुर्गाबदु संठिए - - स्तिबुक बिन्दु -- पानी के बुलबुले के समान । भावार्थ - १५ प्रश्न - हे भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने के योग्य हैं, वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है ?
१५ उत्तर - हे गौतम! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है । इस प्रकार पृथ्वीकायिक के समान अपकायिक के भी नव गमक जानना चाहिये । विशेष में अकायिक के शरीर का संस्थान स्तिबुक ( पानी के परपोटे - बुलबुले ) के
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