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जघन्य काल की स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य तिर्यंचों के चौथे, पाँचवे और छठे गमक में कृष्ण, नील, कापोत- ये तीन लेश्याएँ कही गई हैं, किन्तु यहां चार कही गई हैं । क्योंकि असुरकुमारों में तेजोलेश्या वाले जीव भी उत्पन्न होते हैं । रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति के तिर्यंचों के अध्यवसाय स्थान अप्रशस्त कहे गये हैं, किन्तु यहां असुरकुमारों में प्रशस्त होते हैं। दीघ स्थिति वालों में तो प्रस्त और अप्रशस्त दोनों अध्यवसाय स्थान होते हैं, किन्तु जघन्य स्थिति वालों में अप्रशस्त नहीं पाये जाते, क्योंकि काल अल्प है । रत्नप्रमा पृथ्वी के गमकों में संवेध एक सागरोपम से बतलाया गया है, किन्तु यहां असुरकुमार गमकों में सातिरेक सागरोपम बतलाया गया है । यह भी बलिन्द्र निकाय की अपेक्षा समझना चाहिये ।
भगवती सूत्र - २४ उ २ असुरकुमारों का उपपात
१८ प्रश्न - जड़ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं सष्णिमणुस्सेहिंतो ० असण्णिमणुस्से हिंतो • ?
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१८ उत्तर - गोयमा ! सण्णमणुस्से हिंतो ० णो असष्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति ।
नहीं ।
भावार्थ - १८ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि वे असुरकुमार, मनुष्यों से आते हैं, तो संज्ञी मनुष्यों से आते हैं, या असंज्ञी मनुष्यों से ?
१८ उत्तर - हे गौतम! वे संज्ञी मनुष्यों से आते हैं, असंज्ञी मनुष्यों से
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१९ प्रश्न - जड़ सण्णिमणुस्से हिंतो उववजंति किं संखेज्जवासाउपसण्णमणुस्सेहिंतो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउयसष्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति ?
१९ उत्तर - गोयमा ! संखेज्जवासाज्य० जाव उववजंति, असंखेज्जवासा उ० जाव उववजंति ।
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