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भगवती सूत्र श. २४ उ १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति
वत्तव्वया भाणियव्वा ५ ।
भावार्थ - ९ - यदि वह पृथ्वीकायिक जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त चौथे गमकवत् जानना चाहिये । ५ ।
१० - सो चेव उक्कोसकाल ट्टिईएसु उबवण्णो, एस चैव वत्तव्वया । वरं जहणेणं एक्की वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेजा वा जाव भवादेमेणं जहणणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अ भवग्गहणाई कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासी वाससहस्साइं चउहिं अंतोमुहुतेहिं अमहियाई - एवइयं ० ६ ।
भावार्थ - १० यदि वह जघन्य स्थिति वाला पृथ्वीकायिक, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो यही वक्तव्यता जाननी चाहिये । विशेष यह कि जघन्य, एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं, यावत् भव की अपेक्षा जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव तथा काल की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८ हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है । ६ ।
११ सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिइओ जाओ, एवं तइयगमगसरिसो णिरवसेसो भाणियव्वो । णवरं अप्पणा से ट्रिई जहण्णेणं बावीसं वाससहरसाई, उक्कोसेण वि बावीस वाससहस्साई ७ ।
भावार्थ६- ११ - यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो तीसरे गमक के समान सम्पूर्ण गमक जानने चाहिये, विशेष यह है कि उसकी स्वयं
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