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भगवती सूत्र - श. २४ उ. ३ नागकुमारों का उपपात
१४ - सो चे अप्पणा जहण्णकालट्टिईओ जाओ, तस्स तिसु वि गमएसु जहा तस्स चेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स तहेव णिरवसेसं ६ |
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भावार्थ - १४ - यदि वह स्वयं जघन्य काल को स्थिति वाला हो, तो उसके भी तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्य के समान सम्पूर्ण वक्तव्यता जाननी चाहिये (४-५-६ ) ।
१५- सो चेव अप्पणा उक्कोसका लट्ठिईओ जाओ, तस्स तिसु वि गमएस जहा तस्स चेव उक्कोसकालट्ठिइयरस असुरकुमारेसु उववज्ज - माणस्स, णवरं नागकुमारट्टिई संवेहं च जाणेजा, सेसं तं चैव ९ ।
भावार्थ - १५ - यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य उत्कृष्ट काल की स्थिति और असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्य के समान वक्तव्यता जाननी चाहिये । स्थिति और संवेध नागकुमारों के समान, शेष पूर्ववत् ( ७-८ - ९ )
१६ प्रश्न - जइ संखेजवासाज्यसष्णिमणु० किं पज्जत्तसंखेज ०, अपजतसंखेज ० ?
१६ उत्तर - गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्ज०, णो अपज्जत्तसंखेज्ज० ।
भावार्थ - १६ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं, तो पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य या अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं ?
१६ उत्तर - हे गौतम! वे पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी
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