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शतक २४ उद्देशक २
असुरकुमारों का उपपात
१ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयामी-असुरकुमारा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति-किं गेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरि०, मणु०, देवेहितो उववज्जति ?
१ उत्तर-गोयमा ! णो णेरइएहिंतो उववजंति, तिरिवखजोणिएहिंतो उववज्जति, मणुस्सेहिंतो उववज्जति, णो देवेहिंतो उववज्जति । एवं जहेव णेरड्यउद्देसए, जाव
भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पछा-'हे भगवन् ! असुरकुमार कहां से आते हैं ? क्या नैरयिकों से आते हैं, तियंचों से, मनुष्यों से, अथवा देवों से आते हैं ?'
१ उत्तर-हे गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं आते, तिर्यंच-योनिक और मनुष्यों से आते हैं। देवों से भी नहीं आते। इस प्रकार नरयिक उद्देशक के समान, यावत्
२ प्रश्न-पजत्तअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइकालदिईएसु उववज्जेजा ?
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