________________
भगवती सूत्र-ग. २४ उ. २ असुरकुमारों का उपपात
१० प्रश्न-ते णं भंते !
१० उत्तर-अवसेसं तं चेव जाव 'भवादेसो' ति । णवरं ओगाहणा जहण्णेणं धणुहपहुत्तं, उकोमेणं साइरेगं धणुसहस्सं । ठिई जहण्णेणं साइरेगा पुषकोडी, उक्कोसेण वि साइरेगा पुषकोडी। एवं अणुबंधो वि । कालादेसेणं जहण्णेणं साइरेगा पुवकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अमहिया, उक्कोसेणं साइरेगाओ दो पुवकोडीओएवइयं० ४। ___ भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
१० उत्तर-हें गौतम ! भवादेश तक पूर्ववत् । अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट सातिरेक एक हजार धनुष, स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक पूर्वकोटि, काल से जघन्य सातिरेक पूर्वकोटि अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट सातिरेक दो पूर्वकोटि तक यावत् गमनागमन करता
११-सो चेव जहण्णकालट्टिईएसु उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया । णवरं असुरकुमारट्टिई संवेहं च जाणेजा ५।
भावार्थ-११-यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त वर्णनानुसार । असुरकुमारों की स्थिति और संवेध विचार कर कहना चाहिये ५ । __ १२-सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो, जहण्णेणं साइरेगपुष्वकोडीआउएसु, उकोसेण वि साइरेगपुवकोडीआउएसु उव
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org