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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ मनुष्यों का नरकोपपात
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रयणिपुहुत्तं, उक्कोसेण वि रयणिपुहुत्तं । ठिई जहण्णेणं वासपुहुत्तं, उक्कोसेण वि वासपुहुत्त, एवं अणुबंधो वि । संवेहो उवजुंजिऊण भाणियब्वो ४-५-६। ।
१०९-यदि वह संज्ञी मनुष्य स्वयं जघन्य स्थिति वाला हो और अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो तीनों गमकों में यही वक्तव्यता है । शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट रत्निपृथक्त्व होती है । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट वर्ष-पृथक्त्व होती है । इसी प्रकार अनुबन्ध भी होता है । संवेध का कथन उपयोगपूर्वक जानना चाहिये ४-५-६ । ___ ११०-सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिईओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु एस चेव वत्तव्वया । णवरं सरीरोगाहणा जहण्णेणं पंचधणुसयाई, उक्कोसेण वि पंचधणुसयाई । ठिई जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी, एवं अणुबंधो वि । णवसु वि एएसु गमएसु णेग्इयट्टिई संवेहं च जाणेजा । सव्वत्थ भवग्गहणाई दोणि जाव णवमगमए । कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोक्माई पुन्चकोडीए अभहियाई, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं पुब्बकोडीए अब्भहियाई-एवइयं कालं सेवेजा, एवइयं कालं गइरागई करेजा ७-८-९। * 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! ति जाव विहरइ ॐ
॥ चउवीसइमे सए पढमो उद्देसो समतो ॥
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