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________________ ३००४ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ संज्ञी तिथंच का नरकोपपात - भावार्थ-५५ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञो पञ्चेन्द्रिय तियंच, रत्नप्रभा पृथ्वी में नरयिकपने उत्पन्न हो, तो कितने वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? ५५ उत्तर-हे गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । ५६ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति ? ५६ उत्तर-जहेव असण्णी। भावार्थ-५६ प्रश्न-हे भगवन् ! वे संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यच, एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ५६ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत्, असंज्ञी के समान । ५७ प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरंगा किं संघयणी पण्णता? ५७ उत्तर-गोयमा ! छव्विहसंघयणी पण्णता, तं जहा-वइरो. सभणारायसंघयणी, उसभणारायसंघयणी जाव छेवटुसंघयणी। सरीरो' गाहणा जहेव असण्णीणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उकोसेणं जोयणसहस्सं । भावार्थ-५७ प्रश्न-हे भगवन् ! उन के शरीर के संहनन कितने हैं ? ५७ उत्तर-हे गौतम ! उनके शरीर छहों संहनन वाले हैं। यथावज्रऋषभनाराचसंहनन यावत् सेवार्तसंहनन । शरीर की अवगाहना असंज्ञी के सनान जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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