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भगवती सूत्र - श. २४ उ १ मनुष्यों का नरकोपपात
९५ - सो चेव अपणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ - एस चेव वत्तव्वया । णवरं इमाई पंच णाणत्ताई - १ सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंगुलपुहुत्तं, २ तिष्णि णाणा तिष्णि अण्णाणाई भयणाए, ३ पंच समुग्धाया आदिल्ला, ४ टिई ५ अणुबंधो य जहण्णेणं मासपुहुत्तं, उक्कोसेण वि मासपुहुत्तं, सेसं तं चेव, जाव 'भवादेसी' त्ति । कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई मासपुहुत्त - मन्भहियाई, उकोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं मासपुहत्तेहिं अभ हियाई - एवइयं जाव करेजा ४ |
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भावार्थ - ९५ - यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और रत्नप्रभा के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त जानना चाहिए । विशेषता यह कि १ - शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुलपृथक्त्व और उत्कृष्ट भी अंगुलपृथक्त्व होती है, २-तीन ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प से होते हैं, ३-प्रथम की पाँच समुद्घात होती हैं, ४-५ स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट भी मासपृथक्त्व होता है । शेष भवादेश तक पूर्ववत् जानना चाहिए । काल की अपेक्षा जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम काल तक यावत् गमनागमन करता है |४ |
९६ - सो चेव जहण्णकालट्ठिईएस उववण्णो-एस चैव वत्तव्वया त्थगमगसरिसा यव्वा । णवरं कालादेसेणं जहणेणं दसवाससहस्साईं मासपुहुत्तमन्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तालीसं वाससहस्सा ई चउहिं मासपुहुत्तेहिं अन्भहियाई - एवइयं जाव करेज्जा ५ ।
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