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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ संज्ञी तिर्यंच का नरकोपपात
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जाव पजत्तएहिंतो उववजंति, णो अपजत्तपहिंतो उववजंति ।
भावार्थ-५३ हे भगवन् ! जो नरयिक संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संजी पंचेंद्रिय तियं व से आते हैं, वे जलचर से धल वर या खेचर से आते हैं ?
५३ उत्तर-हे गौतम ! वे जलचर से आते हैं, इत्यादि सब असंज्ञी के समान यावत् पर्याप्त से आते हैं, अपर्याप्त से नहीं।
५४ प्रश्न-पजत्तसंखेजवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोगिए णं भंते ! जे भविए णेरइएसु उवजित्तए से णं भंते ! कइसु पुढविसु उववजेज्जा ?
५४ उत्तर-गोयमा ! सत्तसु पुढविसु उववजेजा, तं जहारयणप्पभाए जाव अहेसत्तमाए । ' .
भावार्थ-५४ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिथंच किन नरक पवियों में उत्पन्न होता है ? ,
५४ उत्तर-हे गौतम ! वह सातों ही नरक पृथ्वियों में उत्पन्न होता है । यथा-रत्नप्रभा यावत् अधःपप्तम पृथ्वी।
- ५५ प्रश्न-पजत्तसंखेजवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविणेरइएसु उवघजित्तए से णं भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववजेज्जा ? __ ५५ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सटिईएसु, उपको. सेणं सागरोवमट्टिईएसु उववजेजा ।
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