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भगवती सूत्र - २४ उ १ मंजी तिर्यंच का नरकोपपान
६० उत्तर - गोयमा ! भवादेसेणं जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ट भवग्गहणाई । कालादेसेणं जहण्णेणं दसवास सहस्सा ई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्को सेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्यकोडीहिं अमहियाई, एवइयं कालं सेवेजा जाव करेजा १ ।
भावार्थ - ६० प्रश्न - हे भगवन् ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच, रत्नप्रभा में नैरयिकपने उत्पन्न हो और फिर संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच हो, इस प्रकार कितने समय तक यावत् गमनागमन करता है ? ६० उत्तर - हे गौतम ! भव की अपेक्षा जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव तक तथा काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल तक सेवन करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है । १ ।
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६१ प्रश्न - पज्जत्तसंखेज्ज० जाव जे भविए जहण्णकाल० जाव से णं भंते! केवइयकालट्टिईए उववज्जेज्जा ?
६१ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्सटिईएस, उक्कोसेण वि दसवास सहसईिएस जाव उववज्जेज्जा ।
भावार्थ - ६१ प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच, रत्नप्रभा में जवन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
६१ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की स्थिति के नैरयिकों में ।
६२ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा० ?
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