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भगवती सूत्र-स. २४ उ. १ नैरपिकादि का उपपातादि
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सेणं पलिओवमस्स असंखेजड़भागं पुवकोडिअमहियं, एवइयं कालं सेवेजा, एवइयं कालं गइरागई करेजा, ३ ।
____ भावार्थ-३३ प्रश्न-हे भगवन् ! वह पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच. योनिक, रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति वाले नयिकों में उत्पन्न हो और पुनः पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक हो, तो इस प्रकार कितने काल तक यावत् गमनागमन करता है ? . ३३ उत्तर-हे गौतम ! भव की अपेक्षा दो भव और काल की अपेक्षा. जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग तक सेवन और गमनागमन करता है । ३।
___ ३४ प्रश्न-जहण्णकालट्टिईयपज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिरखजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविणेरईएसु, उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेजा ?
३४ उत्तर-गोयमा ! जहणणेणं दसवाससहस्सट्टिईएसु उक्कोसेणं, पलिओवमस्स असंखेजइभागट्टिईएसु उववज्जेजा।
भावार्थ-३४ प्रश्न-हे भगवन् ! जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच योनिक जीव, रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरपिकों में उत्पन्न होता है ?
३४ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है।
३५ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया ?
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