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________________ २९९२ भगवती सूत्र-स. २४ उ. १ नैरपिकादि का उपपातादि - - सेणं पलिओवमस्स असंखेजड़भागं पुवकोडिअमहियं, एवइयं कालं सेवेजा, एवइयं कालं गइरागई करेजा, ३ । ____ भावार्थ-३३ प्रश्न-हे भगवन् ! वह पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच. योनिक, रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति वाले नयिकों में उत्पन्न हो और पुनः पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक हो, तो इस प्रकार कितने काल तक यावत् गमनागमन करता है ? . ३३ उत्तर-हे गौतम ! भव की अपेक्षा दो भव और काल की अपेक्षा. जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग तक सेवन और गमनागमन करता है । ३। ___ ३४ प्रश्न-जहण्णकालट्टिईयपज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिरखजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविणेरईएसु, उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेजा ? ३४ उत्तर-गोयमा ! जहणणेणं दसवाससहस्सट्टिईएसु उक्कोसेणं, पलिओवमस्स असंखेजइभागट्टिईएसु उववज्जेजा। भावार्थ-३४ प्रश्न-हे भगवन् ! जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच योनिक जीव, रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरपिकों में उत्पन्न होता है ? ३४ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। ३५ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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