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________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ नै रयिकादि का उपपातादि केवइयकालट्टिईएसु उववज्जेज्जा ? ३१ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागदिईएसु उववज्जेजा, उक्कोसेण वि पलिओवमस्म असंखेजहभागट्टिईएसु उववज्जेजा। भावार्थ-३१ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञो पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न होता है ? ____३१ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । ३२ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा० ? .. ३२ उत्तर-अवसेसं तं चेव जाव अणुबंधो । भावार्थ-३२ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ३२ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् सारी वक्तव्यता यावत् अनुबन्ध (सूत्र ७ से २६) पर्यन्त जानो। ___ ३३ प्रश्न-से णं भंते ! पजत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए उक्कोसकालट्ठिईयरयणप्पभापुढविणैरइए, पुणरवि पजत्ता० जाव करेजा ? ३३ उत्तर-गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागं अंतोमुहुत्तमभहियं, उक्को. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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