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भगवती सूत्र - श. २४ उ १ नैरयिकादि का उपपातादि
भावार्थ - २९ प्रश्न - हे भगवन् ! वह असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
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२९ उत्तर - हे गौतम! पूर्वकथित सारी वक्तव्यता यावत् अनुबन्ध ( सूत्र ७ से २६ ) तक जाननी चाहिये ।
३० प्रश्न - से णं भंते ! पज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिखखजोणिए जहणका लट्ठिय- रयणप्पभापुढविणेरइए, पुणरवि पत्ता असणि० जाव गहराई करेजा ?
३० उत्तर - गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अव्भहिया, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गहराई करेजा २ |
भावार्थ - ३० प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक, जघन्य स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हों और फिर पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक हो, इस प्रकार कितने काल तक यावत् गति आगत करता है
३० उत्तर - हे गौतम ! भव की अपेक्षा दो भव और काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक दस हजार वर्ष, इतना काल सेवन और गमनागमन करता है । २ ।
३१ प्रश्न - पज्जत्ता असष्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं जे भविए उसका लट्ठिए रयणप्पभापुढविणेरइएस उववज्जित्तए से णं भंते !
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