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________________ भगवती सूत्र -ग. २४ उ. १ नरयिकादि का उपपातादि २९९३ ३५ उत्तर-सेसं तं चेव, णवरं इमाई तिण्णि णाणत्ताइ-आउं, अज्झवसाणा, अणुबंधो य । जहण्णेणं ठिई अंतोमुहत्तं, उकोसेण वि अंतोमुहत्तं । प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं केवइया अन्झवसाणा पण्णता ? उत्तर-गोयमा ! असंखेज्जा अन्झवसाणा पण्णत्ता । प्रश्न-ते णं भंते ! किं पसत्था अप्पसत्था ? उत्तर-गोयमा ! णो पसत्था, अप्पसत्था । अणुबंधो अंतोमुहुत्तं, सेसं तं चेव । भावार्थ-३५ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ३५ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । किन्तु उनके आयुष्य, अध्यवसाय और अनुबन्ध के विषय में अन्तर है । यथा-आयुष्य जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त। प्रश्न-हे भगवन् ! उन जीवों के अध्यवसाय कितने होते हैं ? ... उत्तर-हे गौतम ! असंख्यात होते हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! वे अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त ? उत्तर-हे गौतम ! प्रशस्त नहीं होते, अप्रशस्त होते हैं । अनुबन्ध अन्तमुहूर्त होता है । शेष सव पूर्ववत् । । ___ ३६ प्रश्न-से णं भंते ! जहण्णकालट्ठिईए पजत्ताअसण्णिपंचिं. दिय० रयणप्पभा० जाव करेजा ? ____३६ उत्तर-गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमन्भहियाई उक्कोसेणं पलिओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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