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भगवती सूत्र - श. २४ उ १ नैरयिकादि का उपपातादि
वमस्स असंखेजड़भागं अंतोमुहुत्तमव्भहियं एवइयं कालं सेवेज्जा जाव गहराई करेजा ४ ।
भावार्थ - ३६ प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक जीव, रत्नप्रभा में नैरयिकपने उत्पन्न हो और पुनः जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक हो, इस प्रकार कितने काल यावत् गमनागमन करता है ?
३६ उत्तर - हे गौतम ! भव की अपेक्षा दो भव और काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग तक यावत् गमनागमन करता है ४ ।
३७ प्रश्न - जहणका लट्ठिईयपज्जत्तअसण्णिपंचिंदियतिरिखखजोणिए णं भंते ! जे भविए जहण्णका लट्ठिएस रयणप्पभापुढवि रइएस उववज्जित्तए, से ण भंते ! केवइयका लट्ठिईएस उववज्जेज्जा ? ३७ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवा ससहस्सट्टिईएसु, उनको सेण वि दसवाससहस्सट्टिईएस उववज्जेज्जा ।
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भावार्थ - ३७ प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक जीव, रत्नप्रभा में जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह कितनी स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? ३७ उत्तर - हे गौतम जघन्य और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ।
३८ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा० ?
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