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भगवती सूत्र-श. २१ वर्ग २ उ. ५-१० कलाय, मसूर आदि के मूल की उत्पत्ति २६४९
मले, कंदे, खंधे, तयाय साले पवाल पते य ।
सत्तसु वि धणुपुहृत्तं, अंगलिमो पुप्फफलबीए ।। अर्थात्-मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल और पत्र, इन सात में अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुष पृथक्त्व है । पुष्प, फल और वीज, इन तीन की उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल पृथक्त्व है।
॥ इक्कीसवें शतक का पहला वर्ग सम्पूर्ण ॥
शतक २१ वर्ग २ उद्देशक १-१०
कलाय, मसूर आदि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न-अह भंते ! कलाय-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फावकुलत्थ-अलिसंदग-सतिण-पलिमंथगाणं एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते ! जीवा कोहिंतो उववजंति ?
१ उत्तर-एवं मूलादीया दस उद्देसगा भाणियव्वा जहेव सालीणं गिरवसेसं तहेव ।
॥ एगवीसइमे सए विइओ वग्गो समतो ॥
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