________________
२९६२
भगवती सूत्र - २२ वर्ग २ ३ १ १० नीम- आम्रादि के मूल की उत्पत्ति
शतक २२ वर्ग २ उद्देशक १-१०
Deeeeeee
नीम - आम्रादि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न - अह भंते! बि-ब-जंबु कोसंब-ताल-अंकोल्ल-पीलु-सेलसल्लइ-मोयइ-मालुय बउल- पलास करंज पुत्तं जीवग रिद्र-विहेडग-हरियग-भल्लाय - उंबरिय-खीरणिधायई- पियाल-पूइयणिबायग- ( करंज )सेहय पासिय सीसव अयसि - पुण्णाग णागरुक्ख- सीवण्ण- असोगाणं
•
Jain Education International
स्थानकवासी बृहत् साधु सम्मेलन हुआ था। उसमें स्थानकवासी सब सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व था । उसमें केला (कदलीफल ) सचित्त अचित्त का प्रश्न चला था । उन महापुरुषों के सामने भगवती सूत्र का यह पाठ संभवतः उपस्थित नहीं हुआ था, अन्यथा उन महापुरुषों को केले को सचित्त स्वीकार करने में जरा भी संकोच नहीं होता ।
बृहत्कल्प सूत्र संस्कृत टीका सहित सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल जोधपुर द्वारा प्रकाशित हुआ है । इसके अनुवादक और सम्पादक पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. है । इसके पहले उद्देशक में "ताल पलंब" शब्द का प्रयोग हुआ है । जिसका अर्थ पृष्ठ २ में संस्कृत टीका में इस प्रकार किया है । - 'तालो वृक्ष विशेषः तत्र भवं तालं - तालफलं, प्रकर्षेण लम्बते इति प्रलम्बम्' अर्थात् ताल एक प्रकार का वृक्ष होता है। उसके फल को 'ताल प्रलंब' कहते हैं। यह अयं आचार्य मलयगिरि ने किया है । पृष्ठ ८५ में पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ने ताल पलंब शब्द का हिन्दी अर्थ किया है
ताल पलंबे = तालवृक्ष का फल |
इस प्रकार बृहत्कल्प सूत्र की प्राचीन निर्युक्ति भाष्य ओर टीका में ताल पलंब शब्द का अर्थ केला (कदलीफल ) कहीं नहीं किया है । आगम में केले के लिए " कयली" (कदली ) शब्द का प्रयोग हुआ है । किन्तु ताल प्रलंब शब्द का नहीं। तथा किसी भी आगम, व्याकरण, शब्दकोष और आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी ताल प्रलंब शब्द का अर्थ केला (कदली फल ) देखने में नहीं आया है ।
अतः भगवती सूत्र के इस पाठ से केला सचित्त है, यह बात स्पष्ट सिद्ध होती है ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org