________________
भगवती सूत्र - श. २३ वर्ग ४ उ. १-१० पाठा आदि के मूल की उत्पत्ति २९७३
१ उत्तर - एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा णिरवसेसं जहा आलुवग्गो, णवरं ओगाहणा तालवग्गसरिसा, सेसं तं चैव । * 'सेवं भंते! सेवं भंते' ! त्ति
॥ तेवीस मे सए तइओ वग्गो समत्तो ॥
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! आय, काय, कुहुणा, कुन्दुरुक्क उव्वेहलिय, सफा, सज्जा, छत्रा, वंशानिका और कुमारी, इन सब के मूलपने जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आते हैं ?
१ उत्तर - हे गौतम! आलू-वर्ग के समान यहाँ भी मूलादि दस उद्देश जानना । अवगाहना ताड़-वर्ग के समान है । शेष सब पूर्ववत् ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
॥ तेईसवें शतक का तीसरा वर्ग सम्पूर्ण ॥
* r r r r r t i A A A
शतक २३ वर्ग ४ उद्देशक १-१०
पाठा आदि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न- अह भंते ! पाढा-मियवालुंकि महुररसारायवल्लि पउमामोंढरि- दंति-चंडी, एएसि णं जे जीवा मूल० ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org