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२९७२ भगवती सूत्र. २३ वर्ग ३ उ. १-१० आय आदि के मूल की उत्पत्ति १ उत्तर - एवं एत्थ वि दस उद्देसगा जहेब आलुवग्गे | नवरं ओगाहणा तालवग्गसरिसा, सेसं तं चैव ।
* 'सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति
॥ तेवीस मे स विइओ वग्गो समत्तो ॥
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! लोही, नीहू, थोहू, विभगा, अश्वकर्णी, सहकर्णी, सोउंढी और मुसुंढी, इन सब के मूलपने जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आते हैं ?
१ उत्तर - हे गौतम ! आलू-वर्ग के समान यहाँ भी मूलादि दस उद्देशक जानना चाहिये । अवगाहना ताड़ वर्ग के समान । शेष सब पूर्ववत् ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' - कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
॥ तेईसवें शतक का दूसरा वर्ग सम्पूर्ण ॥
शतक २३ वर्ग ३ उद्देशक ९-१०
आय आदि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न - अह भंते ! आय काय कुहुण-कुंदुरुक्क उव्वेहलिया सफासज्जा-छत्ता-वंसाणिय· कुमाराणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए० ?
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