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शतक २३ वर्ग १ उद्देशक १-१०
आलु आदि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-अह भंते ! आलुय-मूलगसिंगवेर-हलिद-रुरु कंडरिय-जीरुच्छोरबिरालि किट्टिकुंदक कण्हकडसुमहु-पयलइ-महसिंगि-णिरहा-सप्पसुगंधा छिण्णरहा-बीय-रहाणं एएस णं जे जीवा मूलत्ताए वकमंति० ?
१ उत्तर-एवं मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा वंसवग्गसरिसा, णवरं परिमाणं जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा उववजंति । अवहारो-गोयमा ! ते णं अणंता समये-समये अवहीरमाणा अबहीरमाणा अणंताहिं
ओसप्पिणीहिं उस्सप्पिणीहिं एवइकालेणं अवहीरं ति, णो चेव णं · अवहरिया सिया । ठिई जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, सेसं तं चेव।
॥ तेवीसइमे सए पढमो वग्गो समत्तो ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-'हे भगवन् ! आलू, मूला, शृंगबेर (अदरख), हल्दी, रुरु, कण्डरीक, जीर, क्षीरविराली (क्षीर विदारीकन्द), कि ड्डि, कुन्दुक, कृष्ण, कडसु,
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