________________
भगवती सूत्र - २४ उ. १ नैरयिकादि का उपपातादि
उवजंति ।
भावार्थ - ५ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि वे जलचर, थलचर और खेचर से आते हैं, तो क्या पर्याप्त या अपर्याप्त जलचर, थलचर और खेचर से आते हैं ? ५ उत्तर - हे गौतम! पर्याप्त जलचर, थलचर और खेचर से आते हैं, अपर्याप्त से नहीं ।
२९८१
६ प्रश्न - पज्जत्ताअसणिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए इस उववज्जित्तर से णं भंते! कइसु पुढवीसु उववज्जेज्जा ? ६ उत्तर - गोयमा ! एगाए रयणप्पभाए पुढवीए उववज्जेज्जा ।
भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक जीव जो नैरयिक में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने नरक पृथ्वियों में उत्पन्न होता है ?
६ उत्तर - हे गौतम ! वह एक रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है ।
७ प्रश्न - पत्ता असणिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए रइएस उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइकालट्ठिएस उववज्जेज्जा ?
७ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं दसवा ससहस्सट्टिईएस, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्टिईएस उववजेज्जा १ ।
Jain Education International
भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
७ उत्तर - हे गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पल्योपम
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org