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शतक २३
णमो सुदेवयाए भगवईए । आलु -लोही अवया पाढा तह मासवष्णि वल्ली य । पंचेए दसवग्गा पण्णासं होंति उद्देसा ॥
कठिन शब्दार्थ -- णमो सुयदेवयाए भगवईए - भगवान् की वाणी रूप भगवती श्रुत देवी को नमस्कार हो ।
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भावार्थ - इस शतक के पांच वर्ग हैं। यथा-आलू आदि साधारण वनस्पति विषयक दस उद्देशात्मक प्रथम वर्ग है । लोही आदि अमन्तकायिक विषयक दूसरा, अवकादि वनस्पति विषयक तीसरा, पाठा मृगवालुंकी आदि वनस्पति विषयक चौथा और माषपर्णी आदि वनस्पति विषयक पाँचवां वर्ग है । प्रत्येक वर्ग में दस-दस उद्देशक हैं । सब मिला कर पचास उद्देशक इस तेईसवें शतक में हैं ।
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