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शतक २२ वर्ग उद्देशक १-१०
पूसफलिकादि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न-अह भंते ! पूसफलि कालिंगी-तुंबी-तउसी-एलावालुकी० एवं पयाणि छिंदियवाणि पण्णवणागाहाणुसारेणं जहा तालवग्गे जाव दधिफोल्लइ-काकलि-मोकलि-अकबोंदीणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वकमंति?
१ उत्तर-एवं मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा जहा तालवग्गो। णवर फलउद्देसे ओगाहणाए जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उकोसेणं धणुहपहत्तं । ठिई सव्वत्य जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं घासपहत्तं, सेस तं चेव । छटो वग्गो समत्तो । एवं छसु वि वग्गेसु सर्द्धि उदेसगा भवंति।
॥ बावीसइमे सए छटो वग्गो समत्तो ॥
॥ बावीसइमं सयं समत्तं ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! पूसफलिका, कालिंगी, तुम्बी, अपुषी (ककड़ी), एलवालुंकी इत्यादि नाम प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद की गाथा (२६ वीं से तीसवीं तक) के अनुसार ताइवर्ग में कहे अनुसार, यावत् दधिफो. ल्लइ, काकली, मोकली और अर्कबोन्दी, इन सब बल्लियों के मूल में गों मीर
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