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शतक २३ वर्ग५ उद्देशक १-१०
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माषपर्णी आदि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न-अह भंते ! मासपण्णी-मुग्गपण्णी-जीवग-सरिसव-कएणुयकाओलि-खीरकाकोलि-भंगि-णहि-किमिरासि-भद्दमुच्छ-णंगलइ. पओय किंणा पउल-पाढे-हरेणुया-लोहीणं,एएसि णं जे जीवा मूल० ?
१ उत्तर-एवं एत्थ वि दस उद्देसगा गिरवसेसं आलुयवग्गसरिसा । एवं एत्थ पंचसु वि वग्गेसु पण्णासं उद्देसगा भाणियव्वा । सव्वत्थ देवा ण उववजंति, तिण्णि लेसाओ।
® 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ' त्ति . ॥ तेवीसइमे सए पंचमो वग्गो समत्तो ॥
॥ तेवीसइमं सयं समत्तं ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! माषपर्णी, मुद्गपर्णी, जीवक, सर्षप केरेणक, काकोली, क्षीर काकोली, भंगी, णही, कृमिराशि, भद्रमस्ता, लांगली, पयोद, किण्णापउलय, पाढ (हढ) हरेणुका और लोही, इन सब के मूलपने जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहां से आते हैं ? .
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