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२९५६ भगवती सूत्र-ग. २१ वर्ग ८ उ. १-१० तुलसी आदि के मूल की उत्पत्ति
चोरा-जीरा-दमणा-मरुया-इंदीवर-सयपुप्फाणं एएसि णं जे जीवा मूलताए वक्कमंति० ?
१ उत्तर-एत्थ वि दस उद्देसगा गिरवसेस जहा वंसाणं । एवं एएसु अट्ठसु वग्गेसु असीइं उद्देसगा भवंति ।
॥ एगवीसहमे सए अट्ठमो वग्गो समत्तो ॥ .
॥ एकवीसइमं सयं समत्तं ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! तुलसी, कृष्ण, दराल, फणेज्जा, अज्जा, चूयणा | चूतणा), चोरा, जीरा, दमणा, मरुया, इन्दीवर और शतपुष्प, इन सब वनस्पतियों के मूल में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहां से आते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! चौथे वंश-वर्ग के समान यहाँ भी मूलादि दस उद्देशक कहने चाहिये । इस प्रकार ये सब मिला कर आठ वर्ग के अस्सी उद्देशक होते हैं।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-प्रथम वर्ग में जो विवेचन दिया गया है, तदनुसार सब का विवेचन समझना चाहिये । यहाँ जिन वनस्पतियों के नाम दिये गये हैं, वे सब प्रायः अप्रसिद्ध वनस्पतियाँ हैं।
॥ इक्कीसवें शतक का आठवां वर्ग सम्पूर्ण ॥
॥ इक्कीसवाँ शतक सम्पूर्ण ॥
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