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भगवती सूत्र-श २१ वर्ग १ उ. २ शालि आदि के कन्द की उत्पत्ति
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! शालि, ब्रीहि यावत् जवजव, इन सब के कन्द रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहां से आ कर उत्पन्न होते हैं ? ।
१ उत्तर-हे गौतम ! कन्द के विषय में पूर्वकथित मूल का समग्र उद्देशक यावत् 'अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं'-तक । विशेष यह है कि यहां 'मूल' के स्थान 'कन्द'-पाठ कहना चाहिये । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।' (२१-२)
इसी प्रकार स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल (कोंपल) और पत्र के विषय में एक-एक उद्देशक मल के समान जानना चाहिए। (२१-७)
___ 'पुष्प' के विषय में भी इसी प्रकार एक उद्देशक कहना चाहिये । विशेषता यह है कि 'पुष्प' में देव उत्पन्न होते हैं। ग्यारहवें शतक के प्रथम उत्पलोद्देशक में, जिस प्रकार चार लेश्या और उनके अस्सी भंग कहे गये हैं, उसी प्रकार यहां भी कहने चाहिए । अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अंगुल पृथक्त्व होती है । शेष सब पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' (२१-८) इसी प्रकार 'फल' और 'बीज' के विषय में भी एक-एक उद्देशक कहना चाहिये । (२१-१०) ये दस उद्देशक हैं।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।'
विवेचन-कृष्ण, नील, कापोत और तेजो लेश्या के एक वचन और बहु वचन की अपेक्षा असंयोगी चार-चार भंग गिनने से आठ भंग होते हैं । द्विकसंयोगो छह विकला होते हैं, उनके एक वचन और बहु वचन से चार-चार भंग होने से चौवीस भंग होते हैं। त्रिकसंयोगी चार विकल्प होते हैं और एक-एक विकल्प के आठ-आठ भंग होने से बत्तीस भंग होते हैं । चतुःसंयोगी सोलह भंग होते हैं । ये कुल मिला कर अस्सी भंग होते हैं।
मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल और पत्र, इन सात में देव उत्पन्न नहीं : होते । पुष्प, फल और बीज में देव उत्पन्न होते हैं । अतएव इन में चार लेश्याएं होती हैं । जिसके अस्सी भंग ऊपर बतलाये हैं । अवगाहना इस प्रकार है
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