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भगवती सूत्र-श. २० उ. १० द्वादश-समजित
'नो-षट्क-समजित' कहलाते हैं । जो एक समय में एक साथ एकादि अधिक छह उत्पन्न . हुए हों, अर्थात् सात, आठ, नौ, दस और ग्यारह तक उत्पन्न हुए हो, वे 'षट्क, नो षट्कसमजित' कहलाते हैं एक समय में जो छह-छह के समुदाय रूप से अनेक उत्पन्न हुए हों, वे 'अनेक षट्क-समजित' कहलाते हैं । जो एक समय में अनेक षट्क समुदाय रूप से और एकादि अधिक रूप से उत्पन्न हुए हों, वे 'अनेक षट्क और एक नो-षट्क-समनित' कहलाते हैं।
नैरयिक जीवों में ये पांचों भंग पाये जाते हैं, क्योंकि नैरयिकों में एक समय में एक से ले कर असंख्यात तक उत्पन्न होते हैं । असंख्यातों में भी ज्ञानियों के ज्ञान से षट्क आदि की व्यवस्था बन जाती है।
एकेन्द्रियों में एक समय में असंख्यात उत्पन्न होते हैं, इसलिये उनमें अनेक पटक'समजित तथा अनेक षट्क और एक नो-षट्क-समर्जित ये दो विकल्प ही पाये जाते हैं।
षट्क-समजित आदि का जो अल्प-बहुत्व बतलाया गया है, वह स्थान के अल्पबाहुल्य की अपेक्षा समझना चाहिये , अथवा वस्तु-स्वभाव ही ऐसा है-समझना चाहिये ।
द्वादश-समार्जत
१९ प्रश्न-णेरड्या णं भंते ! किं बारससमजिया १, णोबारस. समजिया २, बारसरण य णोबारसरण य समजिया ३, बारस
एहिं समजिया ४, बारसएहि य णोबारसरण य समजिया ५ ? - १९ उत्तर-गोयमा ! गेरइया वारससमजिया वि जाव बारसएहि य णोबारसरण य समन्जिया वि ।
प्रश्न-से केणटेणं जाव 'समजिया वि' ? ..
उत्तर-गोयमा ! जेणं णेरड्या बारसरणं पवेसणएणं पविसंति ते णं णेरड्या वारससमजिया १ । जे णं परइया जहण्णेणं एक्केण
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