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भगवती मूत्र-ग. २१ वर्ग १ उ. १ गालि आदि के मूल को उत्पत्ति
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8 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति ॐ ॥ एगवीसइमे सए पढमवग्गस्स पढमो उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! शालि, ब्रीहि, गोधूम यावत् जवजव, इन सब धान्यों के मूल का जीव कितने काल तक रहता है ?
६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहता है।
७प्रश्न-हे भगवन् ! शालि, ब्रीहि, गोधूम यावत् जवजव, इन सभी के मल का जीव यदि पृथ्वोकायिक जीवों में उत्पन्न हो और फिर पीछा शालि, ब्रोहि यावत् जवजन के मलपने उत्पन्न हो, तो इस प्रकार कितने काल तक सेवन (गमनागमन) करता रहता है ?
. ७ उत्तर-हे गौतम ! ग्यारहवें शतक के पहले उत्पलोद्देशक के अनुसार जानना चाहिये। इस अभिलाप से यावत् मनुष्यों तक कहना चाहिये । उनके आहार का कथन भी उत्पलोद्देशक के समान ही, स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वर्ष-पृथक्त्व (दो वर्ष से नौ वर्ष तक)। समुद्घात समवहत (समुद्घात को प्राप्ति) और उद्वर्तना उत्पलोद्देशक के समान है। . ८ प्रश्न-हे भगवन् ! सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, शाली, ब्रीहि यावत् जवजव के मूल के जीवपने पहले उत्पन्न हो चुके हैं ?
८ उत्तर-हां, गौतम ! अनेक अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' - कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-पहले वर्ग में दस उद्देशक हैं। उनकी संग्रह गाथा इस प्रकार है ।
मूले कंदे खंधे तया य साले पवाल-पत्ते य ।
पुप्फे फल बीए विय इक्केको होइ उद्देसो । अर्थात् पहले वर्ग में, दस उद्देशक हैं । यथा-१ मूल, २ कन्द, ३ स्कन्ध, ४ त्वचा, ५ शाखा, ६ प्रवाल (कोमल पत्र), ६ पत्र, ८ पुष्प, ९ फल और १० बीज । ये दस उद्देशक हैं । आगे के सात वर्गों में भी प्रत्येक वर्ग में ये दस-दस उद्देशक हैं
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