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भगवती सूत्र - २० उ. १० पटक समजित तो पट्क समजत २९२९
प्रश्न - सेकेण्डेणं जाव 'समजिया वि' ? उत्तर - गोयमा ! जेणं पुढविकाइया गेहिं छक्कएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं पुढविकाइया छक्केहिं समज्जिया । जेणं पुढविकाइया गेहिं छकएहि य अण्णेण य जहण्णेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं पंचरणं पवेसणएणं पविसंति ते णं पुढविकाइया छक्केहि य णोछक्केण य समज्जिया, से तेण्डेणं जाव 'समज्जिया वि' | एवं जाव वणस्सइकाइया । वेंदिया जाव वेमाणिया, सिद्धा जहा णेरड्या |
भावार्थ - १५ प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव पट्क - समजित हैं, इत्यादि प्रश्न |
१५ उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक षट्क समजत नहीं, नो-षट्कसमजत नहीं और एक षट्क और एक नो-षट्क समजत भी नहीं हैं । किन्तु अनेक षट्क - समजत हैं तथा अनेक षट्क और एक नो- षट्क-समजित भी हैं । प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा गया कि यावत् समजित भी हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक षट्क से प्रवेश करते हैं, वे अनेक षट्क समजत हैं । जो पृथ्वीकायिक अनेक षट्क से तथा जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट पांच संख्या से प्रवेश करते हैं, वे अनेक षट्क और एक नो-षट्क समजित कहलाते हैं । इसलिये हे गौतम! वे यावत् समजित हैं। इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक जानना चाहिये। बेइन्द्रिय से ले कर यावत् वैमानिक तक । सिद्धों का कथन नैरयिक के समान है ।
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१६ प्रश्न - एएसि णं भंते ! णेरइयाणं छकसमज्जियाणं,
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