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भगवती सूत्र - श. २० उ. १० उत्पत्ति उद्वर्तन आत्म- ऋद्धि मे
उव्वति ?
६ उत्तर-गोयमा ! आइड्ढीए उब्वट्टेति णो परिड्ढीए उब्वट्टंति, एवं जाव वेमाणिया, णवरं जोइसिया वेमाणिया य चयंतीइ अभिलावो । ७ प्रश्न - रइया णं भंते! किं आयकम्मुणा उववजंति, परकम्मुणा उववजंति ?
७ उत्तर - गोयमा ! आयकम्मुणा उववजंति, णो परकम्मुणा उववज्जंति, एवं जाव वेमाणिया । एवं उब्वट्टणादंडओ वि ।
८ प्रश्न - रइया णं भंते ! किं आयप्पओगेणं उववज्जंति, परप्पओगेणं उववज्जंति ?
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८ उत्तर - गोयमा ! आयप्पओगेणं उववजंति, णो परप्पओगेणं उववजति, एवं जाव वेमाणिया, एवं उब्वट्टणादंडओ वि ।
भावार्थ - ५ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक आत्म- ऋद्धि ( स्व सामर्थ्य) से उत्पन्न होते है, या पर ऋद्धि से ?
५ उत्तर - हे गौतम! वे आत्म - ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं, पर ऋद्धि से नहीं होते, इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिये ।
६ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक आत्म- ऋद्धि से उद्वर्तते हैं, या परऋद्धि से ?
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६ उत्तर - हे गौतम! वे आत्म- ऋद्धि से उद्वर्तते हैं, पर ऋद्धि से नहीं । इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त । किन्तु ज्योतिषी और वैमानिक'चवते हैं' ऐसा अभिलाप कहना चाहिये ।
७ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक आत्म-कर्म से उत्पन्न होते हैं, या पर- कर्म से ? ७ उत्तर - हे गौतम! आत्म-कर्म से उत्पन्न होते हैं, पर कर्म से नहीं । इस
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