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भगवता सूत्र श २० उ. १० कति अकति संचित
प्रश्न - सेकेण द्रेणं जाव अवत्तव्वगसंचिया वि ? उत्तर - गोयमा ! जे णं णेरड्या संखेज्जपणं पवेसणपणं पविसंति ते णं णेरड्या कइसंचिया, जे णं णेरइया असंखेज्जपणं पवेसणएणं पविसंति ते णं णेरड्या अकइसंचिया, जे णं णेरड्या एकएणं पवेसणवणं पविसंति ते णं णेरड्या अवत्तव्यगसंचिया, से तेणट्टेणं गोयमा ! जाव अवत्तव्वगसंचिया वि । एवं जाव थणियकुमारा ।
१० प्रश्न - पुढविकाइयाणं पुच्छा ।
१० उत्तर - गोयमा ! पुढविकाइया णो कहसंचिया, अकड़संचिया, णो अवत्तव्वगसंचिया ।
प्रश्न-से केणट्टेणं एवं वुच्चड़ - जाव णो अवत्तव्वगसंचिया' ? उत्तर - गोयमा ! पुढविकाइया असंखेजपणं पवेसणएणं पविसंति से तेणट्टेणं जाव णो अवत्तव्वगसंचिया, एवं जाव वणस्सइकाइया, बेंदिया जाव वेमाणिया जहा णेरइया ।
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कठिन शब्दार्थ - कइसंचिया- कतिसंचित - एक समय में संख्यात उत्पन्न अवत्तवंगसंचिया - अवक्तव्यसंचित - एक समय में एक उत्पन्न ।
भावार्थ - ९ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक कतिसञ्चित हैं, अकतिसञ्चित या अवक्तव्यसञ्चित हैं ?
९ उत्तर - हे गौतम ! नैरयिक कतिसञ्चित भी हैं, अकतिसञ्चित भी हैं और अवक्तव्यसञ्चित भी हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि - यावत् अवक्तव्यसंचित भी हैं ?
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