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भगवती मूत्र-ग. २० उ. ६ आहार ग्रहण उत्पत्ति के पूर्व या पश्चात्
वाएयव्यो, एवं जाव अणुत्तरविमाणाणं ईसीपभाराए य पुढवीए अंतरा समोहए जाव अहेसत्तमाए घणोदहि-घणोदहिवलपसु उव. वाएयव्यो । २ ।
भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपकायिक जीव इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के बीच में मरण-समघात कर के सौधर्मकल्प में अपकायिक पने उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि पृथ्वीकायिक के समान प्रश्न ।
६ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् पृथ्वीकायिक के समान । इस प्रकार पहली और दूसरी पृथ्वो के मध्य मरण-समुद्घातपूर्वक अप्कायिक जीवों का यावत् ईषत्प्रागभारा पृथ्वी तक उपपात जानना चाहिये । इस क्रम से यावत् तमःप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी के मध्य में मरण-समुद्घातपूर्वक अप्कायिक जीवों का यावत् ईषत्प्रागभारापृथ्वी तक अपकायिकपने उपपात जानना चाहिये।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपकायिक जीव सौधर्म, ईशान और सनतकुमार माहेन्द्र-कल्प के बीच में मरण-समुद्घात कर के रत्नप्रभा पृथ्वी में घनोदधि और घनोदधि वलयों में अप्कायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न ?
७ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । इस प्रकार पूर्व-कथित अन्तरालों में मरण-समुद्घात को प्राप्त अप्कायिक जीवों का अधःसप्तम पृथ्वो तक के घनोदधि और घनोदधि-वलयों में अपकायिकपने उपपात कहना चाहिये । इस प्रकार यावत् अनुत्तर विमान और ईषत्प्रागभारा पृथ्वी के बीच मरण-समुद्घात प्राप्त अपकायिक जीवों का यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक के घनोदधि और घनोदधिवलयों में अपकायिकपने उपपात जानना चाहिये ।
८ प्रश्न-वाउक्काइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सकरप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए
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