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भगवती मूत्र-श. २० उ. ९ चारण-मुनि की तीव्र गति
४ उत्तर-हे गौतम ! विद्याचारण एक उत्पात (उड़ान) से मानुषोत्तर पर्वत पर समवसरण करते हैं (वहां जा कर ठहरते हैं)। वहां चैत्य वन्दन करते हैं। वन्दना कर के वहां से दूसरे उत्पात से नन्दीश्वर द्वीप में समवसरण (स्थिति) करते हैं । फिर वहां चैत्य वन्दन करते हैं। फिर वहां से एक ही उत्पात से वापिस यहां आते है। यहां आ कर चैत्य वन्दन करते हैं। हे गौतम ! विद्याचारण को तिछी-गति का विषय ऐसा है।
५ प्रश्न-हे भगवन् ! विद्याचारण की ऊर्ध्व-गति का विषय कितना है ?
५ उत्तर-हे गौतम ! विद्याचारण एक उत्पात द्वारा नन्दन वन में समवसरण करता है, फिर वहां चैत्य वन्दन करता है । फिर दूसरे उत्पात द्वारा पण्डकवन में समवसरण करता है। वहां चैत्य वन्दन करता है । फिर वहां से एक ही उत्पात द्वारा वापिस यहां आ जाता है। यहां आ कर चैत्य वन्दन करता है। हे गौतम ! विद्याचारण की ऊर्ध्व-गति का विषय ऐसा कहा है। हे गौतम ! वह विद्याचारण लब्धि का प्रयोग करने सम्बन्धी पापस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल कर जाय, तो आराधक नहीं है और यदि उस पापस्यान की आलोचना और प्रतिक्रमण कर के काल करे, तो वह आराधक होता है।
६ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'जंघाचारणा' २ ?
६ उत्तर-गोयमा ! तस्स णं अट्ठमंअट्टमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्स जंघाचारणलद्धी णाम लद्धी समुप्पजइ, से तेणटेणं जाव जंघाचारणा २। __७ प्रश्न-जंघाचारणस्स णं भंते ! कहं सीहा गई, कहं सीहे गइविसए पण्णत्ते ?
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