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भगवती मूत्र-द. २० उ. ९ चारण-मनि की तीव-गति
इहमागच्छइ, इहमागच्छित्ता इह चेइयाई वंदइ, जंघाचारणस्स णं गोयमा ! तिरियं एवइए गइविसए पण्णत्ते ।
९ प्रश्न-जंघाचारणस्स णं भंते ! उड्ढे केवइए गइविसए पण्णते ?
९ उत्तर-गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं पंडगवणे समो. सरणं करेइ, स० २ करेत्ता तहिं चेइयाई वंदइ, तहिं० २ वंदित्ता तओ पडिणियत्तमाणे विइएणं उप्पाएणं णंदणवणे समोसरणं करेइ, गंदण०२ करेत्ता तहिं चेइयाइं वंदइ, तहिं० २ वंदित्ता इहमागच्छइ, इह चेइयाइं वंदइ, जंघाचारणस्स णं गोयमा ! उड्ढे एवइए गइविसए पण्णत्ते । से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालं करेइ णत्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा। ® 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति । जाव विहरइ *
॥ वीसइमे सए णवमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! जंघाचारण की ति -गति का विषय कितना कहा है ?
८ उत्तर-हे गौतम ! जंघाचारण एक उत्पात से रूचकवर द्वीप में समवसरण करता है, फिर वहां चैत्य वन्दन करता है। वन्दन कर के वहां से लौटते समय एक उत्पात से नन्दीश्वर द्वीप में समवसरण करता है। वहां चैत्य वन्दन कर दूसरे उत्पात से यहां आता है। यहां आकर चैत्य वन्दन करता है। हे गौतम ! जंघाचारण की तिझै-गति और तिझै-गति का विषय
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